प्रकाश (Light)
- प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग होता है। प्रकाश का गमन ‘सरल रेखीय‘ होता है।
General science light |
- प्रकाश की विद्युत चुम्बकीय प्रकृति - ‘मेक्सवेल‘ ने बताई।
- प्रकाश का कणिका सिद्धान्त - ‘आइजक न्यूटन‘ (1666 में) द्वारा दिया गया।
- प्रकाश का तरंग सिद्धान्त - ‘हाइजेन्स‘ द्वारा दिया गया
- प्रकाश तरंगे - ‘दोहरी-प्रकृति‘ की होती है। यह तरंग एवं बंडलों के रूप में संचरित होता है। ये अनुप्रस्थ (Transverse) तरंगें जो निर्वात् में भी गति कर सकती है। संचरण हेतु माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। इनमें ‘धुवण‘ (Polarisation) का गुण पाया जाता है।
- प्रकाश की सर्वाधिक चाल - 3 × 108 m/sec. (निर्वात् में)।
- सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर 500 सैकण्ड में पहुंचता है।
- भिन्न-भिन्न माध्यम में प्रकाश की चाल भिन्न-भिन्न होती है। यह माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है।
- अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंगों हेतु भिन्न-भिन्न होता है। (अपवर्तनांक अधिक - चाल कम)।
- तरंगदैर्ध्य (तरंग लम्बाई) – दो क्रमागत शृंगों या गर्तों के बीच की दूरी।
- प्रकाश की चाल = तरंगदैर्ध्य × आवृत्ति (प्रति सेकण्ड कम्पन्नों की संख्या)
- 'Maxwell' का सिद्धान्त ‘प्रकाश विद्युत प्रभाव‘ की व्याख्या नहीं करता, इसकी व्याख्या ‘प्लांक के क्वान्टम सिद्धान्त‘ द्वारा ‘अल्बर्ट आइन्सटीन‘ ने की इसके लिए इन्हें ‘नोबल पुरस्कार‘ मिला।
- मानव नेत्र सर्वाधिक संवेदनशील पीले रंग के प्रति होते हैं। जबकि प्रकाश या इन्द्रधनुष का मध्य रंग हरा होता है। क्रम - [बैनीआहपीनाला] (Vibgyor)
- प्रकाश के स्त्रोत सूर्य (सबसे बड़ा), आग (प्रथम कृत्रिम स्त्रोत), प्रकाशीय विद्युत उपकरण, टॉर्च इत्यादि हैं।
- दीपक, विद्युत बल के जलने से प्रकाश की उत्पत्ति ताप दीप्ति, पत्थर को रगड़ने से उत्पन्न चमक घर्षण दीप्ति, अंधेरे में घड़ी के डायल का चमकना स्फुर दीप्ति, यातायात संकेत के बोर्ड का वाहनों के प्रकाश से चमकना प्रति दीप्ति एवं रात्रि में जुगनू का चमकना जैव दीप्ति कहलाता है।
छाया –
- प्रकाश के सरल रेखा में गमन करने से छाया का निर्माण होता है। धूप के साथ छाया की लंबाई में परिवर्तन होता है। प्रातःकाल से दोपहर तक छाया की लम्बाई घटती है एवं दोपहर से सायंकाल तक छाया की लंबाई बढ़ती है।
- छाया के अन्दर वाला भाग जहाँ प्रकाश नहीं होता प्रच्छाया कहलाता है। छाया का बाहरी भाग जहाँ कुछ कम अंधकार होता है उपच्छाया कहलाता है। छाया का बनना अपारदर्शी वस्तु की स्थल से दूरी पर निर्भर करता है।
प्रकाश का परावर्तन व इसके नियम
- प्रकाश का किसी चमकीले एवं चिकने पृष्ठ से टकराकर पुनः उसी माध्यम में लौट जाने की घटना ‘परावर्तन‘ (Reflection) कहलाता है।
- दर्पण (Mirror) – परावर्तन का अच्छा उदाहरण है।
- परावर्तन की घटना में \(\angle\)i = \(\angle\)r होता है।
- आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।
Ex. :
(i) ग्रहों, उपग्रहों जैसे शुक्र एवं चांद का चमकना।
(ii) दर्पण में प्रतिबिम्ब का दिखाई देना।
(iii) वस्तुओं के रंग का निर्धारण-जो वस्तु सभी सातों प्रकाशीय रंगों को परावर्तित करते हैं वह वस्तु श्वेत (सफेद) तथा जो सभी रंगों को अवशोषित करने वाली काली (Black) दिखाई देती है।
नोट - कोई भी वस्तु उसी रंग के प्रकाश एवं सूर्य के प्रकाश के प्रकाश में वस्तु उसी रंग की दिखाई देती है अन्य रंगों में काली (Black) दिखाई देगी।
जैसे लाल-फूल, हरे, पीले, नीले, बैंगनी, गुलाबी सभी रंगों में काला दिखाई पड़ता है। लाल एवं sunlight में RED दिखेगा।
नोट - ‘पेरिस्कोप‘ तथा ‘केलिडोस्कोप‘ उपकरण परावर्तन पर आधारित होते हैं तथा कोण से झूके दो दर्पण के मध्य रखी वस्तु के बने प्रतिबिम्बों की संख्या- N =\(\frac{360}{\theta}-1\) होती है। जैसे : \(\theta\) = 60º तो प्रतिबिम्बों की संख्या = 5 होगी।
यदि \(\frac{360}{\theta}\) का मान विषम हो तो 1 नहीं घटाते हैं।
- यदि दर्पण समानान्तर रखे हो तो प्रतिबिम्ब ‘अनन्त‘ होंगे।
- 'L' लम्बाई के व्यक्ति को अपनी पूरी लम्बाई देखने हेतु (L/2) लम्बाई के दर्पण की आवश्यकता होती है। जैसे- 6 फुट व्यक्ति को 3 फुट दर्पण की आवश्यकता होती है। पूरा प्रतिबिम्ब देखने हेतु।
- विसरित परावर्तन (खुरदरी सतह से परावर्तन) के कारण छायादार पेड़ के नीचे तथा कमरे के अन्दर भी प्रकाश प्राप्त होता है।
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion)
- प्रकाश का प्रिज्म से गुजरने पर सातों रंगों में विभक्त होने की घटना वर्ण-विक्षेपण कहलाता है।
- सातों रंग की रूप रेखा - वर्णक्रम (Spectrum) कहलाता है। 'VIBGYOR'
- इस घटना में लाल रंग का विचलन न्यूनतम तथा बैंगनी रंग विचलन सर्वाधिक होता है क्योंकि रंगों का तरंगदैर्घ्य न्यूनतम अर्थात् आवृत्ति ज्यादा होती है अतः कणों से ज्यादा टकराहट होने से वेग में कमी अधिक होती है अतः सर्वाधिक विचलित होता है।
- द्वितीयक इन्द्रधनुष - प्राथमिक की अपेक्षा धुंधला दिखाई देता है।
- सबसे बाहरी रंग = बैंगनी (54º5'), सबसे भीतरी रंग = लाल (50º.8')।
- प्राथमिक इन्द्रधनुष -
- सबसे बाहरी - लाल (42º.8'), सबसे भीतरी - बैंगनी (40º.8')।
- प्राथमिक इन्द्र धनुष में - दो बार अपवर्तन एवं एक बार परावर्तन होता है।
- द्वितीयक इन्द्र धनुष में - दो बार अपवर्तन एवं दो बार परावर्तन होता है।
लेंस (Lens)
लेन्स मुख्यतः कांच के बने होते हैं। ये प्रकाश किरणों को मोड़ देते हैं। अतः ये ‘अपवर्तन के सिद्धान्त‘ पर कार्य करते हैं। लेन्स मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
लेंस के प्रकार –
1. उत्तल लेंस/अभिसारी लेंस (Convex/Convercent lens) – इनकी फोकस दूरी धनात्मक होती है। ये बीच से मोटे एवं किनारों पर पत्तले होते हैं।
उपयोग :
(i) दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia) के निवारण हेतु, (ii) साधारण, संयुक्त एवं खगोलीय दूरदर्शी (Telescope) सूक्ष्मदर्शी में, (iii) मानव नेत्र में, छोटी वस्तुओं को बड़ा देखने में, (iv) घड़ी पुर्जे, विज्ञान के छात्रों द्वारा Specimen देखने में। (v) हवा में जल का बुलबुला भी इस लेंस की भांति व्यवहार करता है।
2. अवतल लेंस/अपसारी लेंस (Concave/Divergent Lens)- इनकी फोकस दूरी ऋणात्मक होती है। ये बीच में पतले तथा किनारों से मोटे होते हैं।
उपयोग : (i) निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) में। (ii) हवा का बुलबुला जल में अवतल लेंस की भांति कार्य करता है।
लैंस की क्षमता या शक्ति - फोक्स दूरी के व्युत्क्रम को लैंस की क्षमता कहते हैं। इसका मात्रक डायोप्टर होता है। उत्तल लैंस की क्षमता धनात्मक व अवतल लैंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।
दृष्टि दोष तथा उसका निवारण
निकट दृष्टि दोष (Myopia) - इसमें लेंस की वक्रता त्रिज्या घट जाती है अर्थात/ लेंस की अवत्तलता बढ़ जाती है जिससे निकट की वस्तु तो साफ परन्तु दूर की अस्पष्ट दिखाई देती है। दूर की वस्तु अस्पष्ट दिखाई देने का कारण दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब का रेटिना से आगे बनना है अर्थात/ रेटिना से पूर्व ही प्रतिबिम्ब बन जाता है।
निवारण - अपसारी लेंस द्वारा (– ve No. के लेंस)।
दूर दृष्टि दोष (हाइपरमेट्रोपिया) – (i) लेंस की वक्रता त्रिज्या बढ़ जाना। (ii) अवतलता का घटना। (iii) दूर की वस्तु साफ तथा पास की वस्तु अस्पष्ट दिखाई देती है क्योंकि पास रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है।
निवारण - अभिसारी लेंस (+ ve lens) का प्रयोग।
जरा दृष्टि दोष (प्रेस बायोपिया) – इसमें रोगी को न पास की और न ही दूर की वस्तु साफ दिखाई देती है। यह सामान्यतः वृद्ध व्यक्तियों को होता है।
निवारण - द्विफोकसी (Bifocal lens) का प्रयोग किया जाता है।
अबिन्दुकता/दृष्टि वैषम्य (Astigmatism) – इसमें कार्निया की सतह की अनियमितता के कारण वस्तु की आकृति साफ नहीं दिखाई देती है।
निवारण - बेलनाकार (सिलिन्ड्रीकल) लेंस का प्रयोग।
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