भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास
पुर्तगाल यूरोप का पहला देश था, जिसने भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किए। इसके पश्चात् डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी व्यापारी भी भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने लगे। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने 31 दिसम्बर, 1600 ई. को एक अधिकार-पत्र द्वारा अंग्रेज व्यापारियों को भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। अंग्रेज व्यापारियों का वह दल ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से जाना जाने लगा जिसका नाम दी गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेन्टस ऑफ लंदन ट्रेडिंग इंटू दी ईस्ट इण्डिया था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपना पहला व्यापारिक केन्द्र सन् 1616 में मुगल बादशाह जहाँगीर की अनुमति से सूरत में स्थापित किया।
1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. के बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शासन का शिकंजा कसा। इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं। वे निम्न हैं -
- 1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट - इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं - (1) कम्पनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया। (2) बंगाल के गवर्नर को तीनों (बंगाल, मद्रास, बम्बई) प्रसिडेन्सियों का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। (3) कोलकाता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी। (4) बंगाल में प्रथम गवर्नर जनरल की स्थापना की गई। (5) एक कार्यकारी परिषद का निर्माण किया गया जिसमें 4 सदस्य एवं गवर्नर जनरल अध्यक्ष होता था। इसे बहुमत से कार्य करना था। बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स बने।
- 1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट - इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ- (1) कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स - व्यापारिक मामलों के लिए, (2) बोर्ड ऑफ कंट्रोलर - राजनीतिक मामलों के लिए।
- 1813 ई. का चार्टर अधिनियम - इसके द्वारा (1) कम्पनी के अधिकार पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। (2) कम्पनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन लिया गया, किन्तु उसे चीन के साथ व्यापार एवं पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वर्षों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा। (3) कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया।
- 1833 ई. का चार्टर अधिनियम - (1) इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए। (2) अब कम्पनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रहा गया। (3) बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा। (4) भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी। भारतीय कार्यकारिणी में विधि सदस्य जोड़ा गया, पहले विधि सचिव लाॅर्ड मैकाले थे।
- 1853 ई. का चार्टर अधिनियम - इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धान्त समाप्त कर कम्पनी के महत्त्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गयी।
- 1858 ई. का चार्टर अधिनियम - (1) भारत का शासन कम्पनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में सौंपा गया। (2) भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गयी। (3) गवर्नर जनरल का पद नाम वायसराय कर दिया गया। भारत के पहले वायसराय लार्ड कैनिंग थे। (4) पन्द्रह सदस्यों की भारत-परिषद् का सृजन हुआ। (5) भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया।
- 1861 ई. का भारत शासन अधिनियम - (1) गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया, (2) विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ, (3) गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी। (4) गवर्नर जनरल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी।
- 1892 ई. का भारत शासन अधिनियम - (1) अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई, (2) इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
- 1909 ई. का भारत शासन अधिनियम (मार्ले-मिन्टो सुधार) - (1) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया। (2) भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति दी गई। (3) केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला। (4) प्रान्तीय विधान-परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी। यह अधिनियम ‘फूट डालो और राज करो’ सिद्धान्त पर आधारित था।
- 1919 ई. का भारत शासन अधिनियम (माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) - (1) केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी - प्रथम राज्यपरिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधानसभा। राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी। जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था। केन्द्रीय विधानसभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वर्षों का होता था। दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था। (2) प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्त्तन किया गया। इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया - आरक्षित तथा हस्तान्तरित।
- आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से करता था। जबकि हस्तान्तरित विषय का प्रशासन प्रान्तीय विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था। द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई. के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया। भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है। इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया।
- 1935 ई. का भारत शासन अधिनियम - 1935 ई. के अधिनियम में 451 धाराएँ और 15 परिशिष्ट थे। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) अखिल भारतीय संघ - यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमीश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों। प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ का स्थापना-संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
(2) प्रान्तीय स्वायत्तता - इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।
(3) केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना - कुछ संघीय विषयों (सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें) को गवर्नर-जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया। अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर-जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गयी, जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था।
(4) संघीय न्यायालय की व्यवस्था - इसका अधिकार-क्षेत्र प्रान्तों तथा रियासतों तक विस्तृत था। इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी। न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौंसिल (लंदन) को प्राप्त थी।
(5) ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता - इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था। प्रान्तीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका - इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।
(6) भारत परिषद् का अन्त - इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अन्त कर दिया गया।
(7) इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था।
(8) इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया।
- 1947 ई. का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम - ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई. को ‘भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम’ प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई. को स्वीकृत हो गया। इस अधिनियम में 20 धाराएँ थीं। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं-
(1) दो अधिराज्यों की स्थापना - 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए गए, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपी जाएगी। (2) भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी। (3) संविधान सभा का विधानमंडल के रूप में कार्य करना - जब तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेतीं, तब तक वे विधानमंडल के रूप में कार्य करती रहेंगी। (4) भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएँगे। (5) जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है। तब तक उस समय 1935 ई. के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा। (6) देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अन्त कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतत्रता प्रदान की गयी।
- संविधान किसी भी देश का कानूनों व नियमों का एक संवैधानिक ढाँचा होता है। संविधान लिखित व अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं। भारत का संविधान निर्मितलिखित संविधानों में विश्व का सबसे विस्तृत संविधान हैं।
भारतीय संविधान सभा:
- कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान की निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 ई. में किया गया।
- संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गयी थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमीश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
- मिशन योजना के अनुसार जुलाई, 1946 ई. में संविधान सभा का चुनाव हुआ। कुल 389 सदस्यों में से प्रान्तों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए। इसमें काँग्रेस के 208, मुस्लिम लीग के 73 स्थान एवं 15 अन्य दलों के तथा स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए।
- 9 दिसम्बर, 1946 ई. को संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित कौंसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन में हुई। सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया और पाकिस्तान के लिए बिल्कुल अलग संविधान सभा की माँग प्रारंभ कर दी।
- हैदराबाद एक ऐसी देशी रियासत थी, जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मलित नहीं हुए थे।
- प्रांतों या देशी रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में प्रतिनिधित्व दिया गया था। साधारणतः 10 लाख की आबादी पर एक स्थान का आबंटन किया गया था। राजस्थान से संविधान सभा में जाने वाले प्रमुख सदस्य K.M. मुंशी एवं बलवन्तसिंह, जयनारायण व्यास और माणिक्यलाल वर्मा थे।
- प्रांतों का प्रतिनिधित्व मुख्यतः तीन प्रमुख समुदायों की जनसंख्या के आधार पर विभाजित किया गया था, ये समुदाय थे - मुस्लिम, सिक्ख (केवल पंजाब) एवं साधारण।
- संविधान सभा में ब्रिटिश प्रान्तों के 296 प्रतिनिधियों का विभाजन साम्प्रदायिक आधार पर किया गया - 213 सामान्य, 79 मुसलमान तथा 4 सिक्ख।
- संविधान सभा के सदस्यों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी।
- 11 दिसम्बर, 1946 ई. को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
- संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर, 1946 ई. को जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारंभ हुई।
- 22 जनवरी, 1947 ई. को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियाँ नियुक्त की। इनमें प्रमुख थीं - वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति।
बी. एन. राव द्वारा तैयार किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 ई. को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति (Drafting Committee) का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अम्बेडकर को चुना गया। प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या सात थी, जो इस प्रकार है-
1. डॉ. भीमराव अम्बेडकर (अध्यक्ष)
2. एन. गोपाल स्वामी आयंगर
3. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर
4. कन्हैयालाल मणिकलाल मुन्शी
5. सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला
6. एन. माधव राव (बी. एल. मित्र के स्थान पर)
7. डी. पी. खेतान (1948 ई. में इनकी मृत्यु के बाद टी. टी. कृष्णमाचारी को सदस्य बनाया गया)
- देश-विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 1947 ई. को किया गया और 31 दिसम्बर 1947 ई. को संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 299 थी।
- प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 ई. को संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट पेश की।
- संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवम्बर से 9 नवम्बर, 1948 ई. तक चला। संविधान पर दूसरा वाचन 15 नवम्बर, 1948 ई. को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 ई. तक चला। संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवम्बर, 1949 ई. को प्रारंभ हुआ जो 26 नवम्बर, 1949 ई. तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया। इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे।
- संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष 11 महीना और 18 दिन लगे। इस कार्य पर लगभग 64 लाख रुपए खर्च हुए।
- संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई।
- संविधान को जब 26 नवम्बर, 1949 ई. को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया, तब इसमें कुल 22 भाग (part), 395 अनुच्छेद (Articles) और 8 अनुसूचियाँ (Schedule) थीं। वर्तमान समय में संविधान में 22 भाग व 3 परिशिष्ट, 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ है।
- संविधान के कुल अनुच्छेदों में से 15 अर्थात् 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392 तथा 393 अनुच्छेदों को 26 नवम्बर, 1949 ई. को ही प्रवर्तित कर दिया गया, जबकि शेष संविधान 26 जनवरी, 1950 ई. को लागू किया गया।
- संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 ई. को हुई और उसी दिन संविधान सभा के द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया।
संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ एवं उनके अध्यक्ष
1. संचालन समिति - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
2. संघ संविधान समिति - प. जवाहरलाल नेहरू
3. प्रांतीय संविधान समिति - सरदार बल्लभ भाई पटेल
4. प्रारूप समिति - डॉ. भीमराव अम्बेडकर
5. झण्डा समिति - जे.बी. कृपलानी
6.मौलिक अधिकारों व अल्पसंख्यकों से सम्बन्धित समिति-सरदार पटेल
7. संविधान सभा के कार्य़ों के लिए समिति - जी.वी. मावलंकर
कैबिनेट मिशन -1946 ई. के प्रस्ताव पर गठित अन्तरिम मंत्रिमंडल (Cabinet) -
1. जवाहरलाल नेहरू - कार्यकारी परिषद् के उपाध्यक्ष, विदेशी मामले तथा राष्ट्रमंडल।
2. बल्लभ भाई पटेल - गृह, सूचना तथा प्रसारण
3. बलदेव सिंह - रक्षा
4. जान मथाई - उद्योग तथा आपूर्ति
5. सी. राजगोपालाचारी - शिक्षा
6. सी. एच. भाभा - कार्य, खान तथा बन्दरगाह
7. राजेन्द्र प्रसाद - खाद्य एवं कृषि
8. आसफ अली - रेलवे
9. जगजीवनराम - श्रम
10. लियाकत अली खाँ - वित्त
11. आई. आई. चुन्दगीगर - वाणिज्य
12. अब्दुल रब नश्तर - संचार
13. जोगेन्द्र नाथ मंडल - विधि
14. गजान्तर अली खाँ - स्वास्थ्य
- कैबिनेट मिशन के सदस्य थे - सर स्टेफोर्डक्रिप्स, लॉर्ड पेंथिकलारेंस तथा ए. बी. एलेग्जेण्डर।
- भारतीय संविधान के द्वारा शासन की सर्वोच्च शक्ति जनता को दी गई है अर्थात् भारत का संविधान जनसम्प्रभुता पर आधारित है।
- भारत का संविधान अधिकांशतः 1935 के भारत शासन अधिनियम पर आधारित है।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की आत्मा‘ कहा जाता है।
- भारतीय संविधान में पहला संशोधन (Amendment) 1951 में हुआ तथा भारत में प्रथम आम चुनाव 1952 में हुए। अब तक लोकसभा के 16 चुनाव हो चुके हैं।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन 1976 में 42वें संशोधन के द्वारा किया गया।
- 42वां संविधान संशोधन भारतीय संविधान का ‘लघु संविधान’ कहा जाता है।
- 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 3 नये शब्द (समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, अखण्डता) जोड़े गये।
- भारत 26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र बना।
भारत के राष्ट्रीय चिन्ह:
- राष्ट्रीय प्रतीक - भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तम्भ के शीर्ष भाग की अनुकृति है। भारत सरकार ने इसे 24 जनवरी, 1950 ई. को अपनाया। प्रतीक के नीचे मुंडकोपनिषद में लिखा सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में अंकित है।
- राष्ट्रीय ध्वज - तीन पट्टियों वाला तिरंगा, गहरा केसरिया (ऊपर), सफेद (बीच) और गहरा हरा रंग (सबसे नीचे) है। सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है जिसमें 24 तीलियाँ हैं। यह अशोक के स्तम्भ पर बने धर्मचक्र का प्रतीक है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3 : 2 है। भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 ई. को अपनाया।
- 25 जनवरी, 2002 को केन्द्र सरकार द्वारा भारत का नया ध्वज कोड-2002 बनाया गया। यह संशोधित ध्वज कोड 26 जनवरी, 2002 के प्रभाव में आने से अब यह राष्ट्रीय तिरंगा घरों, दफ्तरों, दुकानों की छतों पर लहराया जा सकता है। 23 जनवरी, 2004 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने यह घोषणा की, कि संविधान के अनुच्छेद-19(1)(अ) के अधीन राष्ट्रीय ध्वज फहराना नागरिकों का मूल अधिकार है।
- राष्ट्रगान (National Anthem) - रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना गीतांजलि में रचित द्वारा रचित ‘जन-गण-मन’ को संविधान सभा ने 24 जनवरी, 1950 ई. को भारत का ‘राष्ट्रगान’ स्वीकार किया। इसके पूर्ण गायन का समय 52 सेकेण्ड तथा अर्द्ध गायन की अवधि 20 सेकण्ड होती है। इसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 1912 ई. में ‘तत्त्बबोधिनी’ में प्रकाशित किया था। राष्ट्रगान का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद डॉ.अरविन्द घोष ने किया। पहली बार 27 दिसम्बर, 1911 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया।
- राष्ट्रगीत (National Song) - बंकिमचन्द्र चटर्जी के 1882 में प्रकाशित उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में उन्हीं के द्वारा रचित ‘वन्देमातरम्’ को राष्ट्रगीत के रूप में 24 जनवरी, 1950 ई. को स्वीकार किया गया। इसे सर्वप्रथम 1896 ई. में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में सरला देवी चौधरानी ने इस अधिवेशन में गाया गया था।
- राष्ट्रीय कैलेन्डर - ग्रिगेरियन कैलेन्डर के साथ देश भर के लिए शक संवत् पर आधारित राष्ट्रीय पंचाग को सरकारी प्रयोग के लिए 22 मार्च, 1957 ई. को अपनाया गया। इसका पहला महीना चैत्र है। यह सामान्यतः सामान्य वर्ष में 21 मार्च को एवं लीप वर्ष में 22 मार्च को प्रारंभ होता है।
- राष्ट्रीय पशु - भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ (पैंथरा टाइग्रिस-लिन्नायस) है।
- राष्ट्रीय पक्षी - मोर (मयूर) भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। इसे पावो क्रिस्टेटस भी कहा जाता है।
- राष्ट्रीय फूल (पुष्प) - भारत का राष्ट्रीय फूल ‘कमल’ (नेलंबो न्यूसिपरोगार्टन) है।
- राष्ट्रीय फल - भारत का राष्ट्रीय फल आम (मेनिगिफेरा इंडिका) है।
- राष्ट्रीय पेड़ - भारत का राष्ट्रीय पेड़ बरगद है।
- भारत के राष्ट्रीय दिवस -
15 अगस्त - स्वतंत्रता दिवस
26 जनवरी - गणतन्त्र दिवस
2 अक्टूबर - गाँधी जयंती (अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस)
- भारत के अन्य प्रतीक -
राष्ट्र भाषा - हिन्दी
राष्ट्र लिपि - देवनागरी
राष्ट्रीय वाक्य - ‘सत्यमेव जयते’
राष्ट्रीय मुद्रा - रुपया
राष्ट्रीय ग्रन्थ - गीता
राष्ट्रीय मंत्र - ओम
राष्ट्रीय खेल - हॉकी
राष्ट्रीय नदी - गंगा
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
लिखित एवं विशाल संविधान
- भारतीय संविधान एक विशेष संविधान-सभा द्वारा निर्मित एवं लिखित संविधान है।
- इस दृष्टिकोण से भारतीय संविधान अमरीकी संविधान के समतुल्य है।
- भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक दस्तावेज है। मूल संविधान में 22 भाग 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं।
- वर्तमान में संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं।
- भारतीय संविधान की विशालता के कारण ही कुछ लोगों ने इसे ‘वकीलों का स्वर्ग’ (Lawyer's Paradise) कहा है।
संविधान की प्रस्तावना
- भारतीय संविधान में उत्कृष्ट प्रस्तावना है जिसमें जनता की भावनाएँ और आकांक्षाएँ सूक्ष्म रूप में समाविष्ट है।
संप्रभुत्व सम्पन्न राज्य
- प्रभुत्व सम्पन्न राज्य उसे कहते हैं जो बाह्य नियंत्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आन्तरिक तथा विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता हो। इस संबंध में भारत पूर्णतः स्वतंत्र है।
- भारत की सम्प्रभुता किसी विदेशी सत्ता में नहीं अपितु भारत की जनता में निहित है।
- यद्यपि भारत आजादी के बाद भी राष्ट्रमंडल (Common wealth) और संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) का एक सदस्य है, लेकिन उसकी यह सदस्यता अपनी इच्छानुसार है।
लोकतंत्रात्मक गणराज्य
- ‘लोकतंत्रात्मक’ शब्द का अर्थ यह है कि भारत में प्रतिनिधिमूलक प्रजातंत्र की स्थापना की गई है। अर्थात् भारत का शासन भारतीय जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही संचालित करेंगे।
- ‘गणराज्य’ से आशय यह है कि राज्य के सभी नागरिकों को अपनी योग्यतानुसार सभी छोटे-बड़े पदों पर पहुँचने का अधिकार है। साथ ही, भारतीय राज्य का प्रधान (राष्ट्रपति) एक निर्वाचित व्यक्ति होगा, ब्रिटेन की तरह आनुवांशिक व्यक्ति नहीं।
संसदीय सरकार
- संविधान में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था है, जो वेस्टमिंस्टर (इंग्लैंड) पर आधारित है।
- इस प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों में, जिसे मंत्रिपरिषद कहते हैं, निहित होती है। मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।
- यद्यपि संविधान के अनुसार समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के हाथों में निहित है, किन्तु वह उसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है।
मूल अधिकार
- भारतीय संविधान के भाग-3 में नागरिकों के मूल अधिकारों की घोषण की गई है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में मूल अधिकारों की घोषणा संविधान की एक मुख्य विशेषता होती है।
- इन अधिकारों को संविधान में समाविष्ट करने की प्रेरणा अमेरिकी संविधान से मिली है।
राज्य के नीति-निर्देशक तत्व
- संविधान के भाग-4 में कुछ ऐसे निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन करना राज्य का पवित्र कर्तव्य है।
- निदेशक तत्वों के माध्यम से देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- इसकी प्रेरणा मुख्यतः आयरलैण्ड के संविधान से मिली है।
स्वतंत्र न्यायपालिका
- भारतीय संविधान में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग और स्वतंत्र रखा गया है।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए न्यायधीशों की नियुक्ति, वेतन, भत्ता तथा पद से हटाए जाने के संबंध में संविधान में स्पष्ट प्रावधान किये गए हैं, जिस कारण सरकार उन पर दबाव नहीं डाल सकती।
संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सर्वोच्चता का समन्वय
- भारतीय संविधान में संसदीय सर्वोच्चता और न्यायपालिका की सर्वोच्चता के बीच एक अद्भुत मिश्रण है।
- भारतीय संसद न तो इंग्लैण्ड की संसद की तरह सर्वोच्च है और न ही यहां की न्यायपालिका को अमेरिका की न्यायपालिका की तरह असीमित शक्ति प्राप्त है।
कठोर एवं लचीला संविधान-
(नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय)
- भारतीय संविधान एक साथ ही कठोर तथा लचीला दोनों है।
- यह कठोर इसलिए है कि इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन करना अत्यंत कठिन है और इसके लिए एक विशेष प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है। जबकि अधिकतर प्रावधानों को संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।
एकल नागरिकता
- संघात्मक संविधान में साधारणतः दोहरी नागरिकता (एक संघ की और दूसरी राज्यों की) होती है, जैसा कि अमेरिकी व्यवस्था में है। किन्तु, भारतीय संविधान केवल एक नागरिकता को मान्यता प्रदान करता है।
- भारत का प्रत्येक नागरिक केवल भारत का नागरिक है न कि किसी प्रांत का, जिसमें वह रहता है।
वयस्क मताधिकार
- भारत में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था है, जिसमें देश का प्रशासन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। अतः संविधान प्रत्येक वयस्क नागरिक को मताधिकार का अधिकार प्रदान करता है।
- संविधान के प्रवर्तन के समय मतदान का अधिकार केवल उन्हें था, जो 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेते थे, लेकिन संविधान के 61वें संशोधन (1989) के द्वारा मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
केन्द्रोन्मुख संविधान
- भारतीय संविधान की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि संघात्मक होते हुए भी उसमें केन्द्रीकरण की सबल प्रवृत्ति है।
- आपातकालीन परिस्थितियों में संविधान पूर्णतया एक एकात्मक संविधान का रूप धारण कर लेता है।
पंथनिरपेक्ष राज्य
- पंथनिरपेक्ष राज्य का आधारभूत सिद्धान्त यह होता है कि राज्य की ओर से धार्मिक मामलों में तटस्थता की नीति का पालन किया जाए।
- भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को धर्म, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता दी गई है। किन्तु, अन्य स्वतंत्रताओं की तरह राज्य स्वतंत्रता पर भी सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए युक्तियुक्त रोक लगायी जा सकती है।
समाजवादी राज्य
- समाजवादी राज्य की स्थापना संविधान का मुख्य उद्देश्य हे, जिसका संकेत प्रस्तावना में वर्णित सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता दिलाने के संकल्प में मिलता है।
- ‘समाजवादी’ शब्द संविधान में 42वें संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक विचारधारा पर आधारित समाजवाद है जिसका उद्देश्य विभिन्न वर्ग़ों में असमानता समाप्त करके आर्थिक एवं सामाजिक शोषण को समाप्त करना है।
मूल कर्त्तव्य
- 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग (4-क) जोड़कर नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों को शामिल किया गया।
अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा
- भारतीय संविधान इस अर्थ में भी विशिष्ट है कि इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को सुरक्षा प्रदान की गई है।
- इसके लिए मूल अधिकारों की सूची में धार्मिक स्वतंत्रता, संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार दिए गए हैं।
विधि का शासन
- भारतीय संविधान विधि के शासन की स्थापना करता है। इसके तहत विधि के समक्ष सभी नागरिक समान हैं तथा राज्य का प्रत्येक अंग विधि द्वारा नियमित एवं नियंत्रित हैं।
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