अपवाह प्रणाली
सिंधु नदी तंत्र
1. सिंधु
2. झेलम
3. चेनाब
4. रावी
5. सतलज
6. व्यास
गंगा नदी तंत्र
7. गंगा
8. यमुना
9. रामगंगा
10. घाघरा
11. गंडक
12. बूढ़ी गंडक
13. बाघमती
14. कोसी
15. चम्बल
16. काली सिंध
17. बेतवा
18. सोन
19. रिहन्द
20. दामोदर
21. बनास
22. लूनी
23. साबरमती
24. माही
25. नर्मदा
26. ताप्ती
27. सुवर्ण रेखा
28. दक्षिणी कोएल/ब्राह्मणी
29. महानदी
गोदावरी नदी तंत्र
30. गोदावरी
31. पेनगंगा
32. मंजरा
33. वर्धा
34. वेनगंगा
35. इंद्रावती
कृष्णा नदी तंत्र
36. कृष्णा
37. भीमा
38. तुंगभद्रा
39. उत्तरी पेन्नार
40. दक्षिणी पेन्नार
41. कावेरी
42. वैगई
43. ब्रह्मपुत्र
(1) हिमालय की नदियां तथा
(2) प्रायद्वीपीय नदियां।
हिमालय की नदियां -
- हिमालय की नदियां तीन मुख्य तंत्रों में विभाजित है।सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र।
- ये नदियां तिब्बत के पठार की दक्षिणी ढालों से निकलकर हिमालय के मुख्य अक्ष के समानान्तर अनुदैर्ध्य द्रोणियों में बहती हैं।
- वे अचानक दक्षिण की ओर मुड़ती हैं तथा अन्नत पर्वतों के शृंगों को भेदकर उत्तरी मैदान में पहुंचती हैं।
- सिंधु, सतलज, अलकनंदा, गंडक, बह्मपुत्र एवं कोसी के गहरे गार्ज़ों के दिखने से स्पष्ट है कि ये नदियां पर्वतों की अपेक्षा पुरानी हैं।
- ये नदियां हिमालय के बनने की सभी अवस्थाओं में बहती रही हैं जिससे उनके किनारे ऊपर उठते गए, जबकि उनका तल गहरा होता गया तथा गार्ज की परिच्छेदिका में परिवर्तित हो गया।
- प्रायद्वीपीय नदियां घाटियों में से होकर बहती हैं, जो लगभग पूरी तरह संतुलित हो चुकी हैं।
- इन नदियों की समतली अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका से यह संकेत मिलता है कि अब इनके द्वारा अपरदन की क्रिया किए जाने की गुंजाइश बहुत कम है।
- इनमें से बहुत सी नदियां मौसमी हैं, क्योंकि उनका प्रवाह केवल वर्षा पर निर्भर रहता है।
- पठार का दृढ़-शैलाधार तथा धरातल का सामान्यतः जलोढ़हीन चरित्र इन नदियों में विसर्पण नहीं होने देता।
- यही कारण है कि प्रायद्वीपीय नदियों का मार्ग-सीधा तथा सामान्यतः रैखिक है।
उत्तर भारत की प्रमुख नदियां -
- शिवालिक पहाड़ियों के निर्माण के फलस्वरूप भारत का अपवाह तन्त्र तीन भागों में विभक्त हो गया-
(1) सिन्धु नदी तंत्र
(2) गंगा नदी तंत्र एवं
(3) ब्रहमपुत्र नदी तंत्र।
1. सिन्धु नदी तन्त्र - सिन्धु नदी मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में 5,180 मी. की ऊंचाई से निकलती है।
- सिन्धु तन्त्र की नदियां ब्रह्मपुत्र नदी से ठीक उल्टी ओर बहती है।
- यह नदी जम्मू-कश्मीर राज्य में विशाल गार्ज बनाती हुई कैलाश पर्वत श्रेणी को कई स्थानों पर काटती है।
- इसकी सहायक नदियां सतलज, झेलम, चेनाव, रावी एवं व्यास हैं।
- अटक के पास काबुल नदी तथा उसकी सहायक नदियां इससे मिलती हैं।
- सिंधु नदी 2,880 किमी. लंबी है एवं इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 11,65,000 वर्ग किमी. पर फैला है, जिसमें से लगभग 321,290 वर्ग किमी. क्षेत्र भारत में है।
- पाकिस्तान से हुए सिंधु-जल समझौते के अन्तर्गत भारत इस नदी के जल का लगभग 20 प्रतिशत उपयोग कर सकता है।
- दक्षिण की ओर सिंधु नदी से मिलने वाली महत्वपूर्ण सहायक नदियां कुर्रम, तोचो तथा झोब-गोमल हैं।
- पंजाब की पांच प्रसिद्ध नदियों सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम का सामूहिक प्रवाह पंचनद कहलाता है जो सिंधु नदी की मुख्यधारा से मीठनकोटके पहले मिलता है।
- पंजाब में सिंधु की सहायक नदियों में से झेलम का पीर पंजाल तथा व्यास का हिमाचल के पर्वतों से उदगम हुआ है।
- सतलुज नदी हिमालय की श्रेणियों के पार तिब्बत से निकलती है।
2. गंगा नदी तंत्र :
- इस नदी की कुल लंबाई 2,525 किमी. है जिसमें से उत्तर प्रदेश में 1,450 किमी., बिहार में 445 किमी. तथा पश्चिम बंगाल में 520 किमी. है।
- गंगा उत्तरांचल के हिमालय क्षेत्र से निकलती है।
- इस नदी का नाम गंगा देवप्रयाग के बाद पड़ता है, जहां अलकनंदा तथा भागीरथी आपस में मिलती हैं।
- दाहिने तट की मुख्य नदियां यमुना, सोन, पुनपुन तथा टोंस है।
- गंगा के बाएं तट से मिलने वाली प्रमुख नदियां हैं - रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी तथा महानंदा।
- फरक्का के बाद गंगा की मुख्यधारा पूर्व-दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहां इसे पद्मा के नाम से जाना जाता है।
- यहां से गंगा कई धाराओं में बंटकर डेल्टाई मैदान में दक्षिण की ओर बहती हुई समुद्र से मिल जाती है।
- इस हिस्से में यह नदी भगीरथी-हुगली के नाम से जानी जाती है तथा छोटी-छोटी पठारी नदियां जैसे-द्वारका, अजय, रूपनारायण तथा हल्दी आदि इससे आकर मिलती हैं।
- बांग्लादेश में चांदपुर के पास बंगाल की खाड़ी से मिलने से पहले पद्मा से ब्रह्मपुत्र आकर मिलती हैं जिसे यहां जमुना तथा दक्षिणी बांग्लादेश में मेघना के नाम से पुकारा जाता है।
3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र :
- यह दक्षिण-पश्चिम तिब्बत में मानसरोवर झील एवं कैलाश पर्वत के पूर्व में शुरू होकर दक्षिण तिब्बत में पश्चिम से पूर्व की ओर 916 किमी. तक बहकर असम हिमालय को पार करती है।
- तिब्बत में यह सांग्पो नाम से जानी जाती है।
- ब्रह्मपुत्र जिस स्थान पर हिमालय को काटती है वहां इसे ‘दिहांग’ कहते हैं।
- बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र को जमुना कहते हैं।
- सुरमा नदी के मिलान के बाद इसको मेघना कहते हैं।
- अन्त में पद्मा और जमुना दोनों नदियां इसमें चांदपुर के निकट आकर मिलती है।
- ये संयुक्त धाराएं बहुत चौड़ी होकर एक बड़ी एस्चुरी बनाती है, जिसमें बहुत से प्रसिद्ध द्वीप हैं।
- इसकी सम्पूर्ण लंबाई 2,900 किमी. है। ब्रह्मपुत्र गंगा में मिलने वाली नदियों में सबसे बड़ी नदी है।
- सुबनसिरी, जिया भोरेली, मानस ये उत्तर की ओर से आकर ब्रह्मपुत्र में मिलती है।
- बूढ़ी दिहांग, मोरा, गंगाधर, धनसिरी, कोपिल्ली (कपिली), तिस्ता, जलढाका, तोरसा, बारक दक्षिण की ओर से आकर इसमें मिलती है।
प्रायद्वीपीय भारत की नदियां :
- प्रायद्वीपीय क्षेत्र का मुख्य जल-विभाजक पश्चिमी घाट है।
- इस क्षेत्र की नदियां वर्षा पर निर्भर करती हैं।
- नदियां कम गहरी हैं, इसलिए नौकागम्य भी नहीं है।
- यहां की प्रमुख नदियां इस प्रकार हैं -
(A)बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां :
महानदी :
- यह 851 किमी. लम्बी है एवं इसका अपवाह क्षेत्र 1,32,050 वर्ग किमी. है।
- यह छत्तीसगढ़, उड़ीसा से होकर बहती है।
- शिवनाथ, हंसदेव, मांड तथा इब बाएं तट पर तथा जोंक, उग तथा तेल इसके दाहिने तट पर मिलने वाली सहायक नदियां हैं।
- गंगा तथा महानदी के मध्य अंतरास्थापित सुवर्णरेखा तथा ब्राह्मणी के दो छोटे बेसिन हैं।
- इनका अपवहन बेसिन झारखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल तथा छत्तीसगढ़ में विस्तृत है।
गोदावरी :
- प्रायद्वीप की यह सबसे बड़ी तथा देश में गंगा के बाद दूसरी सबसे बड़ी नदी है। जिसकी लंबाई 1465 किमी. है।
- यह महाराष्ट्र के नासिक जिले से निकलती है।
- इसका संपूर्ण अपवहन क्षेत्र 312,812 वर्ग किमी. है, जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत महाराष्ट्र में स्थित है।
- महाराष्ट्र के अतिरिक्त इसका अपवहन क्षेत्र यह मध्यप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ एवं आंध्रप्रदेश में भी पाया जाता है।
- इसके विशाल आकार एवं विस्तार के कारण गोदावरी को वृद्धगंगा के नाम से भी पुकारा जाता है।
- उत्तर में इसकी प्रमुख सहायक नदियां प्रणाहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा तथा इन्द्रावती हैं।
- दक्षिण में मंजीरा नदी प्रमुख है, जो हैदराबाद के निकट इसमें मिलती है।
कृष्णा :
- यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी बड़ी नदी है। इसकी कुल लंबाई 1401 किमी. है।
- यह महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश से होकर बहती है।
- कोयना, धाटप्रथा, मालाप्रथा, भीमा, तुंगभद्रा, मूसी तथा मुनेरु आदि अपनी सहायक नदियों समेत कृष्णा का कुल अपवहन क्षेत्र 258,948 वर्ग किमी. है।
- हैदराबाद मूसी नदी के किनारे स्थित है।
- ये नदियां गहरी घाटियों में बहती हैं।
कावेरी :
- यह कुर्ग जिले में 1,341 मी. की ऊंचाई से निकलती है और दक्षिण-पूर्व की ओर कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में 800 किमी. की लम्बाई में बहती है।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियां उत्तर में हेमावती, लोकपावनी, शिमसा व अरकावती तथा दक्षिण में लक्ष्मण, तीर्थ, कबबीनी, सुवर्णवती, भवानी और अमरावती हैं।
- यह शिवासमुद्रम नामक प्रसिद्ध जलप्रपात बनाती है।
- कावेरी तथा कृष्णा के मध्य पेन्नार बेसिन है, जिसका अधिकांश भाग कर्नाटक में हैं।
- कावेरी जल विवाद तमिलनाडु, कर्नाटक, पांडिचेरी और केरल चार पक्षों के बीच में था।
(B) अरब सागर में गिरने वाली नदियां
सिंधु नदी तंत्र-
- सिंधु और इसकी पांच सहायक नदियां
- झेलम
- चिनाब
- रावी
- व्यास
- सतलज
राजस्थान की नदियां -
- लूणी
- पश्चिम बनास
- साबरमती
- माही
11. नर्मदा :
- नर्मदा मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है तथा पश्चिम-दक्षिण की ओर 1,312 किमी. बहने के बाद भड़ोच के पास अरब सागर में गिरती है।
- इसका अधिकांश भाग मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
- इसके कुल अपवहन क्षेत्र का केवल दसवां भाग गुजरात में है।
- नर्मदा का महत्वपूर्ण लक्षण इसकी सहायक नदियों की कमी है।
- इसकी कोई भी सहायक नदी 200 किमी. से अधिक लंबी नहीं है।
- केवल ओरसन एक अपवाद है, जिसकी लंबाई 300 किमी. है।
- मध्यप्रदेश में संगमरमर की चट्टानों में नर्मदा का रमणीक प्रपात धुआंधार प्रपात प्रसिद्ध है।
- नर्मदा के उत्तर में विन्धयाचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है।
12. ताप्ती :
- यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से निकलकर पश्चिम की ओर 724 किमी. की लंबाई में नर्मदा के लगभग समानांतर एक द्रोणी बेसिन में बहती है।
- यह मध्य प्रदेश महाराष्ट्र तथा गुजरात से होकर बहती है।
- ताप्ती के बाएं तट पर मिलने वाली नदियों में पूर्णा, बेघर, गिरना, बोरी, तथा पंझरा एवं दाहिने तट पर मिलने वाली नदी मनेर मुख्य है।
- इसके मुहाने पर सूरत नगर स्थित है।
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